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इ॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचो॑ जुजुषा॒ण उ॒पाग॑हि । मर्ता॑सस्त्वा समिधान हवामहे मृळी॒काय॑ हवामहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imaṁ yajñam idaṁ vaco jujuṣāṇa upāgahi | martāsas tvā samidhāna havāmahe mṛḻīkāya havāmahe ||

पद पाठ

इ॒मम् । य॒ज्ञम् । इ॒दम् । वचः॑ । जु॒जु॒षा॒णः । उ॒प॒ऽआग॑हि । मर्ता॑सः । त्वा॒ । स॒म्ऽइ॒धा॒न॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ । मृ॒ळी॒काय॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ १०.१५०.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:150» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इमं यज्ञम्) हे परमात्मन् ! इस अध्यात्मयज्ञ को या हे अग्ने ! इस होमयज्ञ को (इदं वचः) इस प्रार्थनावचन को या उच्चारण करने योग्य स्वाहावचन को (जुजुषाणः) सेवन करने के हेतु (उप आगहि) उपगत हो-प्राप्त हो या प्राप्त होता है (समिधानः) प्रकाशित होते हुए (त्वा मर्तासः) तुझे हम मनुष्य (हवामहे) आमन्त्रित करते हैं (मृळीकाय-हवामहे) सुख के लिए आमन्त्रित करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अध्यात्मयज्ञ को और प्रार्थनावचन को स्वीकार करता है, जब मनुष्य उसका आह्वान करते हैं सुखप्राप्ति के लिए, तो वह उन्हें प्राप्त होता है एवं अग्नि होम यज्ञ को स्वाहावचन को प्रसिद्ध करती है उस सुख के लिए, वेदी में मनुष्य प्रदीप्त करते हैं होम के लिए ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इमं यज्ञम्-इदं वचः जुजुषाणः) इममध्यात्मयज्ञं परमात्मन् ! इमं होमयज्ञं वाऽग्ने ! तथेदं प्रार्थनावचनं यद्वोच्यमानं वचनं स्वाहाकारं सेवमानः (उपागहि) उपगतो भव (समिधान) समिध्यमान प्रकाश्यमान (त्वा-मर्तासः) त्वां वयं मनुष्याः (हवामहे) आमन्त्रयामहे (मृळीकाय हवामहे) सुखाय-आमन्त्रयामहे ॥२॥